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बोनस शेयर

स्टॉक स्प्लिट, फेस वैल्यू, डिविडेंड, बोनस शेयर क्या होता है?

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    शेयर बाजार में कई तरह के शब्दों या टर्म्स का इस्तेमाल होता है। अगर आप एक निवेशक है, तो ट्रेडिंग के दौरान इन शब्दों जैसे फेस वैल्यू (FACE VALUE),स्टॉक स्प्लिट (STOCK SPLIT), डिविडेंड (DIVIDEND), शेयर बायबैक (SHARE BUYBACK), शब्द अक्सर सुनने को मिलते हैं, हाल ही में फाइनेंस की बड़ी लिस्टेड कंपनी BAJAJFINSV ने अपने स्टॉक स्प्लिट का ऐलान किया था।

    आखिर ये स्टॉक स्प्लिट होता क्या है?

    निवेशकों के लिए क्यों इतना खास है, ये शब्द कंपनियां क्यों और किस लिए करती हैं, इसका इस्तेमाल? ऐसे सभी सवाल आपके दिमाग में भी आते होंगे। आज हम आपको बताएंगे ये स्टॉक स्प्लिट क्या है? और क्यों किया जाता है? तो आइए, संक्षिप्त रूप से समझते है।

     

    फेस वैल्यू क्या होता है?

    फेस वैल्यू

     

    फेस वैल्यू वह वैल्यू होती हैं, जब कोई कंपनी आईपीओ के माध्यम से पहली बार अपने शेयर जारी करती हैं, तो कंपनी सबसे पहले एक शेयर की वैल्यू निर्धारित करती हैं। इस पर शेयर वैल्यू  के नाम से भी जाना जाता हैं। फेस वैल्यू को हिंदी में अंकित मूल्य भी कहा जाता हैं। उदाहरण के तौर पर जिस प्रकार हम दैनिक दिनचर्या में किसी सामान को लेते समय M.R.P या अंकित मूल्य देखते है और उस सामान के प्राइस के बारे में जानकारी प्राप्त करते है, उसी प्रकार शेयर मार्केट में भी किसी कम्पनी के शेयर की फेस वैल्यू या अंकित मूल्य से कम्पनी के शेयर की जानकारी ले सकते है। 

    आप ने देखा होगा कि आईपीओ (IPO) जब लॉन्च होता है तो,अधिकतर कंपनियां फेस वैल्यू से ज्यादा मूल्य पर अपने शेयर ऑफर करती हैं। इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह हैं, की फेस वैल्यू हमेशा फिक्स रहती हैं। फेस वैल्यू का शेयर की मार्केट प्राइस से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं होता। फेस वैल्यू 1, 2, 5, 10 यहाँ तक की 100 रुपये भी हो सकती हैं। परन्तु अधिकतर समय फेस वैल्यू 10 ही रहती है।

    फेस वैल्यू

    अगर कुछ दिन पहले आए आईपीओ LIC लिमिटेड के आईपीओ की बात की जाये तो, आईपीओ के समय इसकी फेस वैल्यू ₹10 रखी गई थी। परन्तु LIC लिमिटेड का एक शेयर ₹902 -949 के प्राइस बैंड के साथ इशू (ISSUE) किया गया था। इशू प्राइस (ISSUE PRICE) और फेस वैल्यू (FACE VALUE) के बीच का अंतर प्रीमियम होता है, जो की कंपनी निवेशकों से चार्ज करती हैं।

    इशू प्राइस=फेस वैल्यू +मार्केट प्रीमियम 

    फेस वैल्यू तय करने के लिए मार्केट की रेगुरल्ट्री SEBI का कोई पैमाना नहीं है। कंपनी अपनी इच्छा अनुसार इसे तय करती हैं, जबकि मार्केट प्रीमियम पूर्णतया कंपनी की ग्रोथ, प्रॉफिट और भविष्य पर निर्भर करता हैं।

    मार्केट वैल्यू और फेस वैल्यू में क्या अन्तर होता हैं?

    मार्केट प्राइस  और फेस वैल्यू दोनों अलग-अलग होते हैं। किसी शेयर की मार्केट वैल्यू शेयर की डिमांड (DEMAND) और सप्लाई (SUPPLY), कंपनी की परफॉर्मेंस ग्रोथ, प्रॉफिट के आधार पर तय होती हैं। शेयर्स की मार्केट वैल्यू प्रत्येक ट्रेडिंग डे के दौरान बदलती रहती हैं। जैसा की आप ट्रेडिंग के दौरान देखते है, प्राइस हर छड़ अपडेट बदलती रहती है और फेस वैल्यू का मूल्य फिक्स रहता हैं, जो की कुछ कारण वश बदलती है ।

    फेस वैल्यू में तभी बदलाव होता हैं, जब स्टॉक स्प्लिट (SPLIT) हो। फेस वैल्यू को कंपनी के द्वारा तय किया जाता हैं, परन्तु मार्केट वैल्यू को नहीं क्यों की मार्केट वैल्यू शेयर की डिमांड और सप्लाई, कंपनी की परफॉरमेंस ग्रोथ, प्रॉफिट के आधार पर तय होती।

    फेस वैल्यू का उपयोग कब किया जाता है?

    शेयर फेस वैल्यू का उपयोग डिविडेंड (DIVIDEND), स्टॉक स्प्लिट के लिए किया जाता है, डिविडेंड, स्टॉक स्प्लिट के बारे में पूरी जानकारी आगे मिलेगी।  डिविडेंड के लिए डिविडेंड की गणना के लिए फेस वैल्यू बहुत महत्वपूर्ण फैक्टर होता हैं। फेस वैल्यू को ही बेस मानकर कोई कंपनी डिविडेंड घोषित करती हैं। उदाहरण के तौर पर यदि किसी XYZ कंपनी के शेयर की फेस वैल्यू ₹10 हैं और उस कंपनी ने 150% का डिविडेंड देने का निर्णय किया है, तो कंपनी एक शेयर पर ₹15 का डिविडेंड देगी। मतलब की कम्पनी आपको ₹15 के हिसाब से आपके पास जितने शेयर है, उसके गुडज (15 MULTIPLY) में पैसे आपके खाते में क्रेडिट करेगी।

    डिविडेंड= फेस वैल्यू  X कंपनी द्वारा निर्णय किया गया डिविडेंड
             

                 = 10 X 150 %

                   =15
                

    स्टॉक स्प्लिट (STOCK SPLIT) यदि कोई कंपनी स्टॉक स्प्लिट करती  हैं, तो स्प्लिट के अनुपात में फेस वैल्यू में भी बदलाव आता हैं। उदाहरण के लिए किसी XYZ कंपनी के शेयर की मार्केट प्राइस ₹500 है और उसकी फेस वैल्यू ₹10 हैं। यदि कंपनी एक शेयर को 2 शेयर में स्प्लिट यानी 2 :1 करने का निर्णय करती हैं, तो उस शेयर की फेस वैल्यू भी ₹5 हो जाएगी। साथ में निवेशक के शेयर भी दोगुने हो जायेंगे बिना कोई चार्ज दिए। आमतौर पर कंपनी के शेयर की फेस वैल्यू में कोई बदलाव नहीं होता, परन्तु स्टॉक स्प्लिट के केस में स्टॉक स्प्लिट के अनुपात में शेयर की फेस वैल्यू भी बदल जाती हैं।

    अब मन में एक बात आती है, की शेयर की फेस वैल्यू जीरो भी हो सकती है क्या? तो स्टॉक मार्केट के रेगुलेटर सेबी ने किसी भी शेयर की फेस वैल्यू के लिए एक रुपये न्यूनतम मूल्य निर्धारित किया हैं। इसका मतलब की फेस वैल्यू एक रुपये से कम नहीं हो सकती।

    स्टॉक स्प्लिट क्या होता है?
    स्टॉक स्प्लिट

    जैसा की स्प्लिट शब्द से ही हिंदी में समझ आ रहा किसी का विभाजन करना। इसलिए  स्टॉक स्प्लिट का मतलब हुआ शेयर का  विभाजन करना। आसान शब्दों में कहें तो किसी भी एक शेयर को विभाजन दो या उससे ज्यादा बना देना। स्टॉक स्प्लिट के जरिए कंपनियां अपने शेयरों को एक से ज्यादा शेयरों में विभाजित करती हैं।  लेकिन,अब दिमाग में बात आती है, कि ऐसा  क्यों किया जाता है?

    बाजार के बड़े दिग्गजों  का मानना है, कि आमतौर पर जब किसी कंपनी का शेयर प्राइस काफी महंगा होता है, तो छोटे निवेशक उसमें निवेश करने से कतराते हैं। ऐसे में इन छोटे निवेशकों को अपनी तरफ खींचने या आकर्षित करने के लिए कंपनी स्टॉक स्प्लिट करती है। कई बार मार्केट में डिमांड बढ़ाने के लिए भी कंपनियां स्टॉक स्प्लिट करती हैं। जैसा की मैने ऊपर BAJAJFINSV के बारे में बताया, BAJAJFINSV का स्प्लिट से पहले प्राइस ₹8000 -8500 के लगभग थी, स्प्लिट के बाद इसकी प्राइस चेंज होकर 1700 हो गयी। BAJAJFINSV  से अपने शेयर को 5 भागो में विभाजित किया।
    आसान शब्दो में कहे तो, स्टॉक स्प्लिट के द्वारा यह कंपनीयां शेयर बाजार में जारी किए हुए अपने हर एक शेयर को कुछ टुकड़ो में विभाजित कर देती है। यह टुकड़े कितने भी हो सकते है, जैसे 2,5,20 जिस से बाज़ार में उसके शेयर की संख्या पहले से ज्यादा हो जाते है।

     

    उदाहरण के तौर पे मान लेते है कि, हमारे पास XYZ  लिमिटेड के 100 शेयर हैं, जिसकी शेयर प्राइस ₹500  है। जबकि इसकी फेस वैल्यू ₹10 है। किसी कम्पनी की  फेस वैल्यू, आईपीओ के समय सामान्यता ₹10 ही होती है। इस प्रकार हमारे कुल इन्वेस्टमेंट की वैल्यू ₹50000 (₹500 ×100) हुई।

    XYZ  लिमिटेड अगर अपने शेयर को 2:1 में स्प्लिट करने का निर्णय करती है, इसका मतलब हुआ कि इस कंपनी का 1 शेयर 2  शेयर्स में बदल जाएगा। जैसा की हाल में ही BAJAJFINSV के साथ हुआ। इसके साथ ही शेयर प्राइस और फेस वैल्यू आधे हो जायेंगे, स्टॉक स्प्लिट के बाद हमारे 100 शेयर, 200  शेयर में बदल जाएंगे। जबकि शेयर प्राइस ₹500 से ₹250  हो जाएगी। साथ ही फेस वैल्यू ₹10 से ₹5 हो जाएगी।

    आएये देखे स्टॉक स्प्लीट के बाद कम्पनी के फेस वैल्यू में क्या बदलाव होता है ?

    स्टॉक स्प्लीट के दौरान कंपनी की फेस वैल्यू मे बदलाव किया जाता है, फेस वैल्यू किसी कम्पनी के शेयर की अंकित मूल्य होती है, जो की कंपनी बनाते वक्त एक शेयर के लिए निश्चित की गई होती है।

    स्टॉक स्प्लीट के दौरान जिस अनुपात मे शेयर को विभाजित करना है, उसी अनुपात मे शेयर की फेस वैल्यू का भी विभाजन करना पड़ता है। लेकिन रेगुलेटर सेबी के अनुसार किसी भी शेयर की फेस वैल्यू के लिए एक रुपये न्यूनतम मूल्य निर्धारित किया हैं। मतलब की एक से निचे फेस वैल्यू नहीं जा सकती।  

    उदाहरण के तौर पर कंपनी XYZ की फेस वैल्यू  10, उसके शेयर का बाज़ार मे दाम 10000 रुपए तथा उसके बाज़ार मे कुल शेयर 1 लाख है। (Split Meaning in Hindi विभाजन करना)

    अब कंपनी  XYZ अपने शेयर का दाम 10000 मे से 1000 करना चाहती है, जिससे उसके शेयर ज्यादा से ज्यादा छोटे निवेशक भी खरीद सके। इसके लिए वह अपनी कंपनी के शेयर की फेस वैल्यू 10 मे से 1 रुपए कर देगी, जिस से उसके बाज़ार मे 1 लाख के बदले 10 लाख शेयर हो जाएंगे। साथ में स्टॉक स्प्लीट का उस शेयर की प्राइस पर भी असर पड़ता है। कंपनी जिस तरह अपने शेयर को विभाजित करेगी, उसी तरह ही उस शेयर के प्राइस में भी विभाजन होगा । स्टॉक स्प्लीट

    स्टॉक स्प्लिट होने से कम्पनी के शेयर बाजार में बढ़ जायेंगे, वो भी बिना मार्केट कैप के बदले बिना इसका मतलब कम्पनी के मार्केट कैप पे कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

    कंपनी का मार्केट कैप (MARKET CAP) हम उसे जारी किए हुए सभी शेयर की संख्या को एक शेयर के दाम से गुणा कर के जान सकते है।

    मार्केट कैप= शेयर मार्केट प्राइस X कम्पनी द्वारा जारी किए हुए सभी शेयर की संख्या 

    तो दिमाग में ये प्रश्न आता है, की कोई कम्पनी अपने स्टॉक स्प्लिट क्यों करती है ?

    अगर बहुत सालो बाद भी स्टॉक स्प्लिट न किया जाए तो, ऐसी कंपनीओ के एक शेयर का दाम बहुत बढ़ जाता है। जिससे छोटे निवेशक निवेश नहीं कर पाते और स्टॉक में लिक्विडीटी नहीं रहती है, इसलिए कम्पनिया स्टॉक को स्प्लिट करती है।

    जैसे Nestle India जो Nestle के प्रोडक्ट मैग्गी चॉक्लेट बनाने वाली कंपनी है, उसके एक शेयर का दाम आज की तारीख में 18,858 है, और MRF उसके एक शेयर का दाम आज की तारीख में 81,500 है।

    Nestle India

    यानी अगर किसी को Nestle India का सिर्फ एक ही शेयर खरीदना हो तो, उस इन्वेस्टर को  कम से कम 18,858 निवेश करने पड़ेंगे। अब इतनी बड़ी राशि हर कोई निवेश नहीं कर सकता, क्योंकि हमारे जैसे बहुत से लोगो का पूरा निवेश भी किसी एक कंम्पनी में इस से कम होता है। ऐसे में बहुत कम लोग Nestle India के शेयर में निवेश करेंगे। तो फिर Nestle India में तो बहुत कम ही लोग ही ट्रेडिंग करेंगे। जिससे Nestle India के शेयर में लिक्विडिटी  बहुत कम ही रहेगी। लिक्विडिटी का मतलब है, बाज़ार में खरीदे और बेचे जाने वाले शेयर की संख्या बहुत कम होगी। ऐसा न हो इसलिए कंपनीयां स्टॉक स्प्लिट की मदद से अपने शेयर का दाम घटा देती है। जिससे ज्यादा लोग उसके शेयर खरीदकर निवेश कर पाए।

    MRF LIMITED

     

    अगर किसी को MRF LIMITED का सिर्फ एक ही शेयर खरीदना हो तो, उस इन्वेस्टर को  कम से कम 81,500 निवेश करने पड़ेंगे। अब इतनी बड़ी राशि हर कोई निवेश नहीं कर सकता।

    डिविडेंड क्या होता है ?

    What is DIVIDEND?

    डिविडेंड

    डिविडेंड (DIVIDEND) का हिंदी मतलब है, लाभांश अगर इसे दो भाग में विभाजित करें तो, लाभ का एक अंश निकल कर आएगा। डिविडेंड वह अंश होता है, जो किसी कंपनी द्वारा अपने शुद्ध मुनाफे का कुछ हिस्सा अपने शेयर धारकों को लाभ के रूप में देती है। जो की यह डिविडेंड कंपनी शेयर धारकों के पास रखे हुए शेयर के अनुसार देती है, मतलब की आपके पास जितने शेयर होंगे उसके हिसाब से मिलेंगे।

                          उदाहरण के लिए अगर मेरे पास HDFCBANK के 100 शेयर है और कंपनी 10 प्रति शेयर के डिविडेंड का ऐलान करती है, तो मुझे 100 x 10 = 1000 रुपए डिविडेंड के रूप में  मिलेंगे। इसके लिए हमें कोई अपने शेयर को बेचने की आवश्यकता नहीं है। हालांकि बहुत सी कंपनिया अपने निवेशकों को डिविडंड देती है, लेकिन ऐसा कोई सेबी बोर्ड का  नियम नहीं है, की सभी कंपनीओ को डिविडेंड देना ही पड़ेगा। डिविडेंड देना या न देना इसका पूरा फैसला कंपनी के बोर्ड के सदस्यों के  द्वारा किया जाता है। इसमें सेबी का कोई रोल नहीं होता। कई कंपनियां ऐसी है, जिनका बहुत सालो का लगातार डिविडेंड देने का रिकॉर्ड होता है। जिनकी लिस्ट निचे दी गयी है, ये भारतीय कंपनी लगातार पिछले कई वर्षो से डिविडेंड दे रही।

     
    1. RECLTD
    2. IOCL 
    3. VEDL
    4. GAIL
    5. NMDC
    6. SAIL
    7. ONGC
    8. OIL INDIA
    9. COAL INDIA 
    10. HPCL

    इस से हमें पता चलता है, की ऐसी कंपनिया बहुत ही अच्छा मुनाफ़ा कमा रही है। हालांकि सभी अच्छा मुनाफा कमाने वाली कंपनियां डिविडेंड नहीं देती। बहुत सी कंपनिया ऐसी भी है, जो डिविडेंड देने के बजाए खुद के व्यापार में वह पैसा निवेश करती है, जिस से व्यापर बढ़ता है और आखिर में निवेशकों को ही लाभ मिलता है।

                          डिविडेंड बहुत से परिस्थितियों पर नहीं मिलता है, जैसा कि मैंने आपको बताया है, कि किसी कंपनी के लिए डिविडेंड देना अनिवार्य नहीं है, यह कंपनी के बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स द्वारा तय किया जाता है, कि डिविडेंड देना है या नहीं देना है।

     

    आइये देख लेते है, कब डिविडेंड नहीं मिलेगा। 

    जब कंपनी अपना विस्तार करना चाहती है, तो इस स्थिति में वह अपने लाभ को कंपनी के विस्तार में उपयोग करती है। ऐसे समय में वह डिविडेंड नहीं दे सकती है और यदि देती भी है, तो बहुत कम देती है। कोई भी कंपनी आपको तभी डिविडेंड देगी, जब वह लाभ की स्थिति में होगी। अगर कंपनी  लॉस  में होगी तो कभी डिविडेंड नहीं देगी। जब कोई नई कंपनी स्टॉक मार्केट में लिस्ट होती है, तो वह अपने व्यवसाय का विस्तार को ज्यादा प्राथमिकता देती है, बजाय अपने शेयरधारकों को डिविडेंड देने के। इस प्रकार ज्यादातर पुरानी और गवर्नमेंट  कंपनियां ही डिविडेंड देने का कार्य करती है।

     

    डिविडेंड सभी शेयरहोल्डर को भी नहीं मिल सकता ,क्यों की डिविडेंड के लिए कुछ  महत्वपूर्ण पात्रता की आवश्यकता होती है। 

    ANNOUNCEMENT DATE डिविडेंड घोषणा की तारीख (Dividend Announcement dates ) जो की उस कंपनी के डायरेक्टर द्वारा इस तारीख पर डिविडेंड या लाभांश की घोषणा की जाती है। जिसे डिविडेंड घोषणा की तारीख कहते है। 

    EX-DIVIDEND DATE एक्स डिविडेंड की तारीख (Ex-Dividend date ) यह वह तारीख होती  है, जब डिविडेंड प्राप्त करने की तारीख समाप्त होती है

    RECORD DATE रिकॉर्ड की  तारीख (Record date) यह वह तारीख है, जब एक शेयरधारक की पात्रता की जांच की जाती है, किन-किन शेयरधारकों को डिविडेंड देना है। ये सबसे महत्वपूर्ण तारीख होती है, अगर इस तारीख के अंदर आपके डीमैट खाता में उस कंपनी के शेयर होल्डिंग में है, तभी आप डिविडेंड के पात्र है। अन्यथा नहीं अगर आप अंतिम तारीख को मतलब की रिकॉर्ड की अंतिम तारीख तो शेयर खरीदते है, तब भी आप इसके लिए पात्र नहीं होंगे। क्योंकि सेबी के नई गाइडलाइन के अनुसार शेयर को होल्डिंग (HOLDING) में जाने के लिए न्यूनतम दो कार्य दिवस का समय लगेगा। 

    भुगतान की तारीख (Dividend Payment date) यह वह तारीख है, जब कंपनी डिविडेंड को शेयरधारकों के संबंधित खातों में भुगतान करती है। डिविडेंड का भुगतान आपके द्वारा डीमैट अकाउंट में दिए गए बैंक अकाउंट में किया जाता है।

    स्टॉक मार्केट में बोनस शेयर क्या होता है?

    बोनस शेयर
    बोनस शेयर को समझने के लिए आइए सबसे पहले समझते है, बोनस का हिंदी मतलब  क्या होता है,

    बोनस का हिंदी मतलब है – अतिरिक्त लाभ या गिफ्ट जो की किसी बिना भुगतान के किया हो ,तो फिर इस तरह बोनस शेयर का अर्थ है- अतिरिक्त शेयर जो की किसी बिना भुगतान के मिले। 

    अक्सर हमें न्यूज़ पेपर ,मीडिया या अन्य माध्यम से सुनने को मिलता है, कि –  “XYZ कंपनी ने बोनस शेयर जारी किए”, या फिर – “XYZ  बोनस शेयर जारी करने वाली है। अब ऐसे में हमारे मन में कई बातें आती है, जिन्हें समझने की जरूरत है, कि आखिर बोनस शेयर क्या होता है ? और कंपनी के बोनस शेयर जारी करने से निवेशकों को क्या फायदा है? और साथ ही कंपनी बोनस शेयर क्यों जारी करती है?


    बोनस शेयर क्या होता है
    बोनस शेयर वो होता है, जब कंपनी अपने वर्तमान शेयर होल्डर्स को रिवॉर्ड के रूप में एक निश्चित अनुपात में अतिरिक्त शेयर देने की घोषणा करती हैं। जो कि बिना किसी भुगतान के दिए जाते है।
    आइये उदाहरण से समझते है,अगर कोई कंपनी ने 2 अनुपात 1 (2 :1 )  में बोनस की घोषणा की है, तो प्रत्येक शेयरहोल्डर जिसके पास एक शेयर हैं, उसे दो अतिरिक्त शेयर मिलेंगे।

    जैसे अगर किसी के पास किसी XYZ  कंपनी के कुल 500  शेयर हैं, तो बोनस शेयर के बाद उसके पास में कुल 1500 शेयर (500  + 1000 ) हो जाएंगे। बोनस शेयर प्राप्त करने के लिए शेयरहोल्डर्स को कोई भी राशि का भुगतान नहीं करना होता है। इसी प्रकार यदि किसी कंपनी ने 4:1 में बोनस शेयर जारी किया हैं, तो इसका मतलब है कि जिस शेयरहोल्डर के पास में एक शेयर हैं, उसे चार अतिरिक्त शेयर मिलेंगे।


    कंपनी बोनस शेयर क्यों जारी करती हैं?

    किसी भी कंपनी को अपने शेयरधारकों को बोनस शेयर देने का अधिकार होता है। कंपनियां समय-समय पर अलग-अलग तरीकों से अपने शेयरहोल्डर्स को प्रॉफिट देती रहती हैं। अगर कंपनी चाहे तो अपने प्रॉफ़िट्स  में से कैश (CASH) के रूप में डिविडेंड का भुगतान नहीं करके बोनस जारी कर सकती हैं। ये सब जैसे की  शेयर्स होल्डर्स को डिविडेंड देना हैं या बोनस देना, ये पूर्णतया कंपनी के ऊपर निर्भर करता हैं। इस प्रकार कंपनी अपने प्रॉफ़िट्स में से अपने वर्तमान शेयरहोल्डर्स को बोनस दे सकती हैं। बोनस या डिविडेंड जारी करने वाली कंपनी की मार्केट में एक निवेशक का एक अलग नज़रिया बनती हैं, जो भी बोनस जारी करने का एक मुख्य कारण भी हैं। अच्छी बोनस देने वाली कुछ कंपनियां निचे लिस्ट में दी गयी है। 

    1. BPCL 
    2. INFY
    3. WIPRO 
    4. ITC 
    5. IOCL 
    6. TATASTEEL 
    7. SBIN 

    जैसा डिविडेंड देने से कम्पनी के शेयर प्राइस में प्रभाव पड़ता है, वैसे ही जब कोई कंपनी बोनस शेयर देती है, तब भी उसके प्राइस में दिए गए बोनस के अनुपात के अनुसार प्राइस में प्रभाव पड़ता है। यह बात ध्यान रखिए की बोनस शेयर में कंपनी के शेयर की फेस वैल्यू में कोई बदलाव नहीं आता। उदाहरण के लिए  मान लेते हैं XYZ कंपनी ने 2:1 में बोनस शेयर जारी किया। किसी के पास इस कंपनी के कुल 100 शेयर हैं और कंपनी की वर्तमान शेयर प्राइस ₹600 हैं।

    बोनस शेयर

    बोनस शेयर सभी शेयर होल्डर को भी नहीं मिल सकता, क्यों की बोनस के लिए कुछ  महत्वपूर्ण पात्रता की आवश्यकता होती है। 

    ANNOUNCEMENT DATE बोनस घोषणा की तारीख (Bonus  Announcement dates ) जो की उस कंपनी के डायरेक्टर द्वारा इस तारीख पर बोनस की घोषणा की जाती है, जिसे बोनस घोषणा की तारीख कहते है। 

    EX-BONUS DATE एक्स बोनस की तारीख (Ex-Bonus  date ) यह वह तारीख होती है, जब बोनस प्राप्त करने की तारीख समाप्त होती है

    RECORD DATE रिकॉर्ड की  तारीख (Record date) यह वह तारीख है, जब एक शेयरधारक की पात्रता की जांच की जाती है, किन-किन शेयरधारकों को बोनस देना है। ये सबसे महत्वपूर्ण तारीख होती है, अगर इस तारीख के अंदर आपके डीमैट खाता में उस कंपनी के शेयर होल्डिंग में है, तभी आप बोनस के पात्र है। अन्यथा नहीं अगर आप अंतिम तारीख को मतलब की रिकॉर्ड की अंतिम तारीख को  शेयर खरीदते है, तब भी आप इसके लिए पात्र नहीं होंगे। क्योंकि सेबी के नई गाइडलाइन के अनुसार शेयर को होल्डिंग (HOLDING) में जाने के लिए न्यूनतम दो कार्य दिवस का समय लगेगा। 

    भुगतान की तारीख (Bonus Payment date) यह वह तारीख है, जब कंपनी बोनस को शेयरधारकों के डीमैट खाता में बोनस शेयर का  भुगतान करती है। बोनस शेयर  का भुगतान आपके द्वारा बनाए गए डीमैट अकाउंट जिसमे शेयर होल्डिंग में है, उसी डीमैट खाता  में जोड़ दिया  जाता है।
    उदाहरण के तौर पर मान लीजिये XYZ  लिमिटेड ने 20 अक्टूबर को बोनस शेयर घोषित किया। किसी निवेशक के पास XYZ  लिमिटेड के 100 शेयर हैं। इस इश्यू की रिकॉर्ड डे (RECORD DATE) 10th नवम्बर और एक्स रिकॉर्ड डेट (EX-RECORD DATE) 08th नवम्बर रखी गई हैं।

    अगर निवेशक  शेयर्स को 10th नवम्बर तक होल्ड करता हैं, तो वह बोनस पाने की पात्रता रखता है यदि  निवेशक 08 नवम्बर को ही ये शेयर को बेच देता हैं, तो वह  बोनस शेयर प्राप्त होने की पात्रता खो देगा।

    बोनस से कंपनी को होने वाले फायदे

    बोनस जारी करने के कारण शेयर प्राइस कम हो जाती हैं, जिससे कंपनी के शेयर में लिक्विडिटी की मात्रा में वृद्धि होती हैं। अगर कंपनी बोनस जारी करती हैं, तो कंपनी में निवेशकों  के विश्वास में वृद्धि होती हैं। कंपनी के शेयर की प्राइस कम होने से छोटे निवेशक भी उस कंपनी में निवेश करते है, जैसा की हमने ऊपर डिविडेंड वाले भाग में समझा था।

    निवेशक को होने वाले फायदें

    बोनस जारी होने से निवेशकों के पास कंपनी के शेयर की संख्या में इजाफा होता हैं। शेयर की संख्या में इजाफा होने से निवेशक को पहले से ज्यादा डिविडेंड प्राप्त होता हैं, क्योंकि डिविडेंड प्रति शेयर जारी किया जाता हैं। बोनस शेयर के बाद कंपनी का शेयर प्राइस कम हो जाता हैं। इससे ऐसे निवेशक जो पहले ज्यादा शेयर प्राइस होने के कारण कंपनी के शेयर होल्डर नहीं बन पा रहे थे, उनके पास भी मौका होता है, कि वे शेयर में इन्वेस्ट कर सकें। अगर मार्केट सेंटीमेंट सही हो तो बोनस इश्यू के बाद शेयर प्राइस कम होने से शेयर के दाम बढ़ने की उम्मीद रहती हैं। बोनस जारी करना निवेशकों के लिए बढ़िया माना जाता हैं।

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