Table of Contents

  • Future Contract  (फ्यूचर  कॉन्ट्रैक्ट)
  • Option Contract (ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट) 
  • Why Derivative? डेरिवेटिव क्यों जरूरी है?
  • Type of Derivative Trader  (डेरिवेटिव ट्रेडर के प्रकार)
    • HEDGERS (हेड्जर्स)
    • SPECULATOR (स्पेक्यूलेटर)
    • MARGIN TRADER (मार्जिन ट्रेडर)
    • ARBITRAGEURS (आर्बिट्राजर)
    • HEDGERS (हेड्जर्स) क्या होते हैं?
    • SPECULATOR (स्पेक्यूलेटर) क्या होते हैं?
    • MARGIN TRADER (मार्जिन ट्रेडर)
    • ARBITRAGEURS (आर्बिट्राजर)
  • Type of Derivative ( डेरिवेटिव के प्रकार)
    • Future Contract  (फ्यूचर  कॉन्ट्रैक्ट)
      • Lot Size (लॉट साइज)
      • Expiry day (एक्सपायरी दिन)
      • MARGIN OR LEVERAGE 
      • Option Contract (ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट)
  • ऑप्शन डेरिवेटिव्स के प्रकार
    • ऑप्शन  दो प्रकार का होता है –
    • CALL OPTION & PUT OPTION
      • CALL (CE) & PUT (PE) क्या होता हैं?
        • Lot Size 
        • Expiry day
        • Premium Price
        • Call & Put   मैं ट्रेड कैसे करते हैं?
      • OPTION BUYER VS OPTION SELLER

 

Derivative एक ऐसा इंस्ट्रूमेंट  होता है जिसमें अपनी खुद की वैल्यू नहीं होती है बल्कि उसकी वैल्यू किसी Underlying Asset से प्राप्त होती है, उसे डेरिवेटिव कहा जाता है।

 

 

जिस पर उसकी वैल्यू निर्भर करता है उसे Underlying Asset कहा जाता है, उदाहरण के तौर पर जैसा की पनीर की वैल्यू दूध पर निर्भर करती है इसलिए यह दूध, पनीर का Underlying Asset है।

 

 

 Underlying Asset  मैं जैसे-जैसे बदलाव आएगा  उसी तरह उसके डेरिवेटिव में भी बदलाव आएगा।

Type of Derivative ( डेरिवेटिव के प्रकार)

Future Contract  (फ्यूचर  कॉन्ट्रैक्ट)

Option Contract (ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट) 

Why Derivative? डेरिवेटिव क्यों जरूरी है?

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

डेरिवेटिव का उपयोग करके हम विभिन्न विभिन्न प्रकार से शेयर मार्केट से मुनाफा कमा सकते हैं।   इसलिए डेरिवेटिव के बारे में मैं पूरी तरह से पता होना चाहिए और साथ ही साथ ट्रेड करना भी आना चाहिए।  ताकि हम गिरते हुए भी मार्केट में मुनाफा बना सकें, जैसा कि  कुछ महीने पहले  मार्केट में गिरावट हुई थी, जिसकी वजह से शेयर खरीदने वाले मुनाफा नहीं बना पाए, लेकिन डेरिवेटिव में ट्रेड करने वाले आसानी से मुनाफा बनाएं है। 

 

 


 

Type of Derivative Trader  (डेरिवेटिव ट्रेडर के प्रकार)

HEDGERS (हेड्जर्स)

 

 

SPECULATOR (स्पेक्यूलेटर)

 

 

MARGIN TRADER (मार्जिन ट्रेडर)

ARBITRAGEURS (आर्बिट्राजर)

 

 

 

 

फ्यूचर एंड ऑप्शन हम लोग पूरा संक्षिप्त में समझेंगे, उससे पहले डेरिवेटिव ट्रेडर के  प्रकार देख लेते हैं,  ताकि आपको ट्रेड करने में आसानी हो जाए।

 

 

HEDGERS (हेड्जर्स) क्या होते हैं?

 

 

हेजर ट्रेडर होते हैं, जो अपने आप को होने वाले नुकसान से बचाने के लिए या मार्केट में हो रहे उतार-चढ़ाव  से होने वाले नुकसान को  सुरक्षित रखने के लिए Hedge Position का उपयोग करते हैं।

 

 

 हेज में फ्यूचर और ऑप्शन दोनों का उपयोग किया जाता है।

 

 

उदाहरण के लिए आपने रिलायंस का 250 शेयर  खरीदा और रिलायंस किसी कारण से नीचे गिरने लगा, तो वहां पर आप को होने वाले नुकसान को बचाने के लिए PUT OPTION   खरीद लेंगे,  और रिलायंस में गिरावट आएगी तो पुट ऑप्शन से आपको फायदा मिलेगा। इस तरह से आप अपने होने वाले नुकसान को बचा सकते हैं।

 

 

 दूसरा उदाहरण अगर आपने कोई और दूसरा निफ़्टी या बैंक  निफ़्टी इंडेक्स का फ्यूचर  खरीदा है, की  मार्केट ऊपर जाएगा लेकिन मार्केट ऊपर ना जाकर, किसी कारण से गिरावट आती है तो वहां पर हम पुट ऑप्शन को  खरीद सकते हैं या तो कॉल ऑप्शन को शॉर्ट सेलिंग कर सकते हैं। 

 

 

इस तरह से होने वाले बड़े  नुकसान को हम बचा सकते हैं।  

 

 

इसे मार्केट ट्रेडिंग की भाषा में हेजर कहा जाता  हैं। 

 

 

SPECULATOR (स्पेक्यूलेटर) क्या होते हैं?

 

 

स्पेक्यूलेटर वो ट्रेडर या इन्वेस्टर होते हैं, जो बहुत कम समय के लिए  किसी शेयर  शेयर या डेरिवेटिव को  खरीदते हैं और प्रॉफिट आने पर उसे बेच देते हैं। इस तरह से स्पेक्यूलेटर  ट्रेडर या इन्वेस्टर शेयर मार्केट में लिक्विडिटी लाते  हैं। यह किसी प्रकार से  हेज या आर्बिट्राज का प्रयोग नहीं करते  हैं।

 

 

उदाहरण के तौर पर रिलायंस का शेयर ₹2600  रुपया चल रहा है, और स्पेक्यूलेटर ट्रेडर या इन्वेस्टर को लगता है यह ₹2650 तक जा सकता है, तो रिलायंस के शेयर को  ₹2600 में खरीद लेगा और बहुत कम  अवधि में  मुनाफा मिलने पर उसे बेच देगा।  इस तरह से स्पेक्यूलेटर बहुत कम कम अवधि में शेयर को  शेयर को खरीद और बेचकर मार्केट में लिक्विडिटी लाते हैं।

 

 

MARGIN TRADER (मार्जिन ट्रेडर)

 

 

मार्जिन ट्रेडिंग ट्रेडर होते हैं, जो मार्केट में ट्रेड करने के लिए मार्जिन या लिवरेज का उपयोग करते हैं, सबसे ज्यादा डेरिवेटिव में इसका उपयोग किया जाता हैं। 

 

 

उदाहरण के लिए अगर मुझे रिलायंस का शेयर खरीदना है,  रिलायंस की कीमत ₹2600 है, FUTURE कॉन्ट्रैक्ट में  तो 250 शेयर लेना होगा, जिसकी कीमत Underlying Asset में Shares 250*2600= Rs ₹650000 लगेगा, लेकिन डेरिवेटिव के फ्यूचर कांट्रैक्ट में खरीदने के लिए मुझे सिर्फ और सिर्फ ₹125000 देना होगा। 

 

 

मतलब मुझे 5 गुना मारजिंग मिल रहा है, फ्यूचर में ट्रेड करने के लिए अगर मैं यहां पर रिलायंस का पुट ऑप्शन भी खरीद लेता हूं, जैसा कि हेजर करता है, तो वहां पर मुझे मार्जिन सिर्फ ₹50,000 ही देना होगा तो इस तरह से किए जाने वाले ट्रेड को ट्रेडर को मार्जिन ट्रेडर कहते हैं। 

 

 

ARBITRAGEURS (आर्बिट्राजर)

 

 

आर्बिट्राजर ट्रेडर इन्वेस्टर होते हैं, जहां पर किसी एक स्टॉक में Underlying Asset की वैल्यू और फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट की वैल्यू में ज्यादा अंतर हो जाता है, जैसा कि उदाहरण के तौर पर देखें तो रिलायंस ₹2600 चल रहा है, और किसी कारण से तेजी आती है, तो उसके फ्यूचर कॉन्टैक्ट में ज्यादा तेजी आएगी तो यह ₹2600 से ₹2700 पहुंच जाएगा और उसका फ्यूचर ₹2600 से ₹2730 पहुंच जाएगा, तो दोनों के बीच में ₹30 का अंतर होगा। 

जो कि आने वाले  समय पर पर 2 से 4 दिनों में एक बराबर हो जाते हैं, तो इस तरह से ₹30 के अंतर को हम आर्बिट्राजर का उपयोग करके मुनाफा कमाते हैं।  जहां पर Underlying Asset  रिलायंस को ₹2700 में खरीदेंगे  और उसके फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट को  ₹2730 में शॉर्ट सेलिंग कर देंगे।  

जो ₹30 का अंतर है, वह बराबर आने पर हमें ₹30 का मुनाफा हो जाएगा, ₹20 का मुनाफा होने पर 250 का लॉट साइज है तो, 250 गुना 30  से कर देंगे मतलब, हमें ₹7500 का मुनाफा होगा।  अगले 2 से 4 दिनों में आर्बिट्राज ट्रेडर इन्वेस्टर वह लोग ज्यादा उपयोग करते हैं, जिनके पास कैपिटल ज्यादा होता है इस प्रकार से आर्बिट्राज का उपयोग करके मुनाफा कमाया जाता हैं। 

 

 

Type of Derivative ( डेरिवेटिव के प्रकार)

 

 

Future Contract  (फ्यूचर  कॉन्ट्रैक्ट)

 

 

फ्यूचर कांट्रैक्ट वह कॉन्ट्रैक्ट होता है, जहां पर दो पार्टी किसी एक  Underlying Asset के Future को  खरीदने के लिए पैसे इन्वेस्ट करता है, कि यह ऊपर जाएगा और अगली पार्टी उसे शॉर्ट सेलिंग करता है,  की यह फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट नीचे जाएगा, और दोनों के बीच में एक कॉन्ट्रैक्ट बन जाता हैं। 

जिसमें समय निर्धारित होती है, और साथ ही साथ उस कॉन्ट्रैक्ट में  लॉट साइज जिसे क्वांटिटी बोलते हैं, वह भी निर्धारित की जाती है, अगर फ्यूचर कांट्रैक्ट ऊपर जाता है, उस निर्धारित लेवल से तो खरीदने वाले को मुनाफा होता है, और शॉर्ट सेलिंग करने वाले को नुकसान उठाना पड़ता है, उसी तरह से अगर फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट नीचे चला जाता है, तो खरीदने वाले को नुकसान उठाना पड़ता है, और बेचने वाले को मुनाफा होता हैं। इस तरह से दो पार्टी के बीच में किए गए कॉन्ट्रैक्ट को फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट कहते हैं। 

 

 

फ्यूचर कांट्रैक्ट आप खरीद सकते हैं, लेकिन आपके पास वह शेयर नहीं है, तो भी आप फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट को शॉर्ट सेलिंग कर सकते हैं, तो यहां पर आपको दोनों ही सुविधा उपलब्ध हो जाती है फ्यूचर ट्रेडिंग के अंदर। 

 

 

आइए इसे संक्षिप्त रूप से समझते हैं। 

 

 

Lot Size (लॉट साइज)

 

 

फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट में ट्रेड करने के लिए हम दो या पांच क्वांटिटी को  खरीद नहीं कर सकते हैं,  खरीदने के लिए हमेशा लॉट साइज में  खरीदना होता है, जिसमें लॉट साइज के अंदर अलग-अलग  क्वांटिटी होती हैं।

 

 

जैसा कि निफ्टी में एक  लॉट के अंदर 50 क्वांटिटी होती है, बैंक निफ्टी में 1 लॉट के अंदर 25 क्वालिटी होती हैं, और स्टॉक में अलग-अलग स्टॉक के ऊपर निर्भर करता है कि उस स्टॉक का  कीमत ज्यादा होगी तो लॉट साइज कम होगा, कीमत कम होगी तो लॉट साइज ज्यादा होगा।

 

 

Expiry day (एक्सपायरी दिन)

 

 

फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट का एक्सपायरी, इंडेक्स और स्टॉक फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट सबके लिए एक ही समय निर्धारित हैं।

 

 

वैसे देखा जाए तो महीने की जो एक्सपायरी होती है, 3 महीने तक होती हैं।  वर्तमान एक्सपायरी जैसा कि यह अगस्त का महीना चल रहा है, तो अगस्त का अंतिम गुरुवार इस महीने की एक्सपायरी होगा, फिर अगली महीने की सितंबर की आखरी गुरुवार दूसरी एक्सपायरी होगी, फिर उसके अगले महीने की अक्टूबर महीने की आखिरी गुरुवार तीसरे माह की एक्सपायरी होगी, अगर अगस्त महीने की एक्सपायरी खत्म हो जाती है तो नया एक्सपायरी नवंबर महीना का चालू हो जाएगा,  जो कि लगातार लाइन से सितंबर अक्टूबर-नवंबर होगा।

 

 

 तो इस प्रकार से फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट का एक्सपायरी दिन काम करता है, और उसके हिसाब से हमें डेरिवेटिव में ट्रेड करना होता हैं।

 

 

MARGIN OR LEVERAGE 

 

 

फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट में ट्रेडिंग करते हैं, तो ट्रेडिंग करने के  समय आपको पूरा पैसा नहीं देना होता है, यहां पर आपको 4 से 5 गुना का मार्जिन मिल जाता हैं।

 

 

जैसा कि ऊपर ही मैंने बताया हुआ है रिलायंस का शेयर ₹2600 चल रहा है तो, अगर रिलायंस का शेयर खरीदना होगा तो, हर एक शेयर की कीमत ₹2600 देना होगा, जहां पर  फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट के  लॉट  साइज में  250 क्वांटिटी होती है, तो ₹2600 गुना 250 लगेगा, लेकिन फ्यूचर कांट्रैक्ट में मुझे सिर्फ और सिर्फ ₹125000 ही देना होगा, तो इस तरह से फ्यूचर कांट्रैक्ट में ट्रेड करने के लिए मार्जिन या लिवरेज मिलता हैं।

 

 

Option Contract (ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट)

 

 

ऑप्शन डेरिवेटिव्स जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है इसमें आपके पास एक ऑप्शन होता है कि आप जब चाहे उस कांट्रैक्ट से बाहर आ सकते हैं। शेयर मार्केट में इसका एक निश्चित टाइम होता है जो की आने वाले अगले 03 माह तक रहता है जिसकी ख़त्म होने की तारीख माह के गुरुवार को होती  है  आइये एक उदाहरण से इसे समझते हैं।

 

 

उदाहरण मान लीजिये आपको एक कार  चाहिए जिसकी कीमत 10  लाख रुपए है। आप जब उस कार  को लेने शो रूम जाते है तो आपको पता चलता है कि वो कार अभी मार्केट या सो रूम  में उपलब्ध नहीं है। आपको शोरूम का मैनेजर कहता है कि वो कार  2 महीने में आ जाएगा। आप उस कार  को 2 महीने बाद खरीद सकते हैं लेकिन आपको शोरूम मैनेजर बताता है कि चूंकि उस कार  का डिमांड बहुत ज्यादा है इसीलिए हो सकता है कि 2 महीने बाद जब वो कार  मार्केट में आए तो उसकी कीमत 10  लाख 80  हज़ार रुपए हो जाये। ऐसी स्थिति में 2 महीने बाद आपको 80  हज़ार रुपए एक्सट्रा देने पड़ेंगे।

 

 

इसी से बचने के लिए मैनेजर आपको एक सलाह देता है कि आप 10000 रुपए एडवांस में जमा कर दीजिये ताकि दो महीने बाद अगर उस कार  की कीमत बढ़ भी जाये तो भी आपको वो आज के प्राइस पर ही मिल जाएगा। आपने 10000 रुपए देकर उस कार  की बुकिंग करा ली। इसे कहा जाता है बुकिंग अमाउंट या फिर प्रीमियम।

 

 

इससे होगा ये कि अब कार  की कीमत कितना भी क्यों न बढ़े आपको वो 10  लाख रुपए में मिल जाएगा। लेकिन इस कांट्रैक्ट में आपके पास ऑप्शन ये है कि आप चाहे तो इस कांट्रैक्ट से बाहर भी आ सकते हैं। जैसे कि अगर 2 महीने बाद उस कार  की कीमत बढ़ने के बजाय अगर घट जाये।

 

 

मान लेते हैं कि उस कार  की कीमत 2 महीने बाद सिर्फ 9 लाख  रुपए हो गई ऐसी स्थिति में आप उसे 10  लाख में क्यों खरीदना चाहेंगे। तो जाहिर है आप इस कांट्रैक्ट से बाहर आ जाएँगे। अगर आप बाहर आ गए तो आपको सिर्फ 10  हज़ार रुपए का लॉस होगा क्योंकि बुकिंग अमाउंट नॉन-रिफ़ंडेबल होता है। फिर भी आपको 90  हज़ार का फायदा हो जाएगा क्योंकि आपको वो कार  मार्केट में सिर्फ 9 लाख में मिल रहा है। यहीं है ऑप्शन डेरिवेटिव्स का मूल कॉन्सेप्ट।

 

 

 

 

ऑप्शन डेरिवेटिव्स के प्रकार

ऑप्शन  दो प्रकार का होता है –

CALL OPTION & PUT OPTION

 

 

 

 

CALL (CE) & PUT (PE) क्या होता हैं?

 

 

कॉल जिसे मार्केट में ट्रेडिंग की भाषा में शॉर्ट फॉर्म में ही बोला जाता है, जब निफ़्टी बैंक, निफ़्टी या कोई स्टॉक ऊपर जाने की स्थिति में होता है तो वहां पर हम Call Option को Buy करते हैं और वहां से मुनाफा कमाते हैं।

 

 

जिसे मार्केट में ट्रेडिंग की भाषा में शॉर्ट फॉर्म में CE ही बोला जाता  हैं।

 

 

जब मार्केट निफ़्टी बैंक, निफ़्टी या कोई स्टॉक नीचे जाने की स्थिति में होता है, तो वहां पर हम PUT Option को Buy करते हैं और वहां से मुनाफा कमाते हैं, जिसे मार्केट में ट्रेडिंग की भाषा में शॉर्ट फॉर्म में PE बोला जाता हैं।

 

 

तो आइए हम कॉल और पुट दोनों को संक्षिप्त रूप से समझते हैं, कि इसका प्रीमियम कैसे बनता है?
कैसे हमें कॉल और पुट को ऐड करना होता है?
इसका लॉट साइज क्या होता है?
Call & Put का एक्सपायरी  कब होता है? 

 

 

हमें कॉल और फुट में कैसे Trade करना होता है?

 

 

Lot Size 

 

 

कॉल और पुट में ट्रेड करने के लिए हम दो या पांच क्वांटिटी को  खरीद नहीं कर सकते हैं,  खरीदने के लिए हमेशा लॉट साइज में  खरीदना होता है, जिसमें लॉट साइज के अंदर अलग-अलग  क्वांटिटी होती हैं।

 

 

जैसा कि निफ्टी में एक  लॉट के अंदर 50 क्वांटिटी होती है, बैंक निफ्टी में 1 लॉट के अंदर 25 क्वालिटी होती है, और स्टॉक में अलग-अलग स्टॉक के ऊपर निर्भर करता है कि उस स्टॉक का  कीमत ज्यादा होगी तो लॉट साइज कम होगा, कीमत कम होगी तो लॉट साइज ज्यादा होगा।

 

 

Expiry day

 

 

 कॉल और पुट का एक्सपायरी, इंडेक्स ऑप्शन और स्टॉक के ऑप्शन में अलग-अलग होता हैं।

 

 

जैसा कि निफ्टी और बैंक निफ़्टी के ऑप्शन में वीकली एक्सपायरी और महीने की एक्सपायरी होती है, लेकिन स्टॉक के ऑप्शन में सिर्फ महीने  एक्सपायरी होती है, जो कि वर्तमान के उस  मैं महीने के अंतिम गुरुवार को एक्सपायर हो जाताहैं।

 

 

निफ़्टी बैंक, निफ़्टी इंडेक्स के ऑप्शन में महीने के अंतिम गुरुवार को एक्सपायरी होता है, और साथ ही साथ हर हफ्ते (Weekly) की गुरुवार के दिन भी एक्सपायरी होता हैं।

 

 

वैसे देखा जाए तो महीने की जो एक्सपायरी होती है, 3 महीने तक होती हैं।  वर्तमान एक्सपायरी जैसा कि यह अगस्त का महीना चल रहा है, तो अगस्त का अंतिम गुरुवार इस महीने की एक्सपायरी होगा, फिर अगली महीने की सितंबर की आखरी गुरुवार दूसरी एक्सपायरी होगी, फिर उसके अगले महीने की अक्टूबर महीने की आखिरी गुरुवार तीसरे माह की एक्सपायरी होगी, अगर अगस्त महीने की एक्सपायरी खत्म हो जाती है तो नया एक्सपायरी नवंबर महीना का चालू हो जाएगा,  जो कि लगातार लाइन से सितंबर अक्टूबर-नवंबर होगा।

 

 

Premium Price

 

 

जब भी किसी स्टॉक या निफ़्टी बैंक या निफ्टी इंडेक्स का ऑप्शन का प्रीमियम कैलकुलेट करते हैं, तो उस ऑप्शन की वर्तमान कीमत और उसके  लॉट साइज से गुणा कर दिया जाता है, तो वहां पर प्रीमियम प्राइस निकल जाता हैं।

 

 

उदाहरण के लिए  निफ़्टी के 17500 कॉल की वर्तमान कीमत ₹90 हैं और निफ्टी  एक लॉट साइज के अंदर 50  क्वांटिटी होती है तो ₹90 में ₹50 का  गुना कर देंगे तो प्रीमियम प्राइस ₹4500 आ जाएगा।

 

 

मतलब निफ्टी के 17500 के कॉल को खरीदने के लिए ₹4500 की जरूरत होगी, इसको ही प्रीमियम प्राइस बोला जाता हैं।

 

 

Call & Put   मैं ट्रेड कैसे करते हैं?

 

 

कॉल और पुट में ट्रैक करने के लिए हमें डीमेट अकाउंट होना चाहिए, अगर हमारे पास डिमैट अकाउंट है तो सर्च ऑप्शन में जाकर मुझे सर्च करना होगा।

 

 

अगर निफ्टी का ऑप्शन है तो मैं सर्च करूंगा NIFTY 17500CE तो मुझे वहां पर 17500CE  वीकली और महीने की एक्सपायरी दिखाएगा, तो जिसमें मुझे ट्रेड करना है उसका मैं चयन करूंगा।

 

 

जैसे मुझे वीकली ऑप्शन में ट्रेड करना है तो 17500CE और  वीकली का तारीख चयन करके  ट्रेड करूंगा,  और स्टॉक के ऑप्शन में महीने की एक्सपायरी होती, है तो महीने का चयन करूंगा।

 

 

 उसके बाद जो भी चयन होगा  ट्रेड करने के लिए उसमें BUY चयन करूंगा, फिर जितना क्वांटिटी लेना होगा, उसका चयन करके BUY बटन में ओके कर लूंगा और वह ऑप्शन BUY हो जाएगा।

 

 

कॉल ऑप्शन को या पुट ऑप्शन को जैसे हम खरीद सकते हैं, उसी तरह से हम उसे शॉर्ट सेलिंग भी कर सकते हैं, लेकिन शॉर्ट सेलिंग करने पर हमें एक EXPOSURE और SPAN मार्जिन देना होता है, जो कि फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट के बराबर होता हैं।

 

 

आइए इसे आसान सी भाषा में समझते हैं।

 

 

OPTION BUYER VS OPTION SELLER

 

 

कॉल या पुट ऑप्शन को खरीदते हैं तो हमें प्रीमियम प्राइस देना होता है, जहां पर हमारा नुकसान निर्धारित होता है कि उससे ज्यादा नहीं होगा, लेकिन शॉर्ट सेलिंग करते हैं तो हमें पैसे फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट के बराबर देना होता हैं। जहां पर  मुनाफा निर्धारित होता है कि उतना ही होगा, उससे ज्यादा नहीं हो सकता, लेकिन नुकसान निर्धारित नहीं होता जहां पर स्टॉपलॉस ना लगाया जाए तो नुकसान बहुत ज्यादा भी हो सकता हैं।

 

 

उदाहरण के तौर पर NIFTY17800CE ₹100 है, और लॉट साइज 50 है, तो मैं इसे खरीद लूंगा,  जहां पर 5000 का नुकसान निर्धारित है, लेकिन मुनाफा होगा तो ₹3000 ₹5000 ₹10,000 ₹15,000 ₹25000 तक हो सकता है, लेकिन अगर मैं इसे शॉर्ट सेलिंग करता हूं, तो मुझे मुनाफा सिर्फ ₹5000 का ही होगा, लेकिन नुकसान stop-loss ना लगाने पर ज्यादा भी हो सकता हैं।

 

 

 मुनाफा और नुकसान मार्केट के ऊपर या नीचे जाने पर कैसे निर्धारित होता हैं।

 

 

अगर आपने NIFTY 17800 का कॉल ऑप्शन  खरीदा है, तो NIFTY 17800 से ऊपर जाना चाहिए तभी आपको मुनाफा मिलेगा, लेकिन NIFTY 17800 का कॉल ऑप्शन अपने शॉर्ट सेलिंग किया है, तो अगर  NIFTY 17800 के ऊपर नहीं गया, तो भी हमें मुनाफा मिलेगा।

 

 

अगर वह NIFTY 17800 के नीचे चला गया तो 100% में मुनाफा मिलेगा ही मिलेगा, इस तरह से ऑप्शन ट्रेडिंग काम करता है इसे और अच्छे से समझेंगे


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1 Comments

  1. Trubymutt

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